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स वे॑द सुष्टुती॒नामिन्दु॒र्न पू॒षा वृषा॑ । अ॒भि प्सुर॑: प्रुषायति व्र॒जं न॒ आ प्रु॑षायति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa veda suṣṭutīnām indur na pūṣā vṛṣā | abhi psuraḥ pruṣāyati vrajaṁ na ā pruṣāyati ||

पद पाठ

सः । वे॒द॒ । सु॒ऽस्तु॒ती॒नाम् । इन्दुः॑ । न । पू॒षा । वृषा॑ । अ॒भि । प्सुरः॑ । प्रु॒षा॒य॒ति॒ । व्र॒जम् । नः॒ । आ । प्रु॒षा॒य॒ति॒ ॥ १०.२६.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:26» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषा) पोषणकर्त्ता परमात्मा (इन्दुः-न वृषा) चन्द्रमा की भाँति आनन्दवर्षक (सः-सुष्टुतीनां वेद) वह हमारी शोभन स्तुतियों को जानता है, तदनुसार अनुग्रह करता है (प्सुरः-अभि प्रुषायति) साक्षात् हुआ अपने आनन्दरस से हम उपासकों को सींचता है-तृप्त करता है (नः-वज्रम्-आ प्रुषायति) हमारे इन्द्रियस्थान को अपने आनन्दरस से भरपूर करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - पोषणकर्त्ता परमात्मा स्तुतियों द्वारा चन्द्रमा की भाँति अपने आनन्द रस से उपासकों को तृप्त करता है और प्रत्येक इन्द्रियस्थान में भी अपने आनन्द की अनुभूति कराता है ॥३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषा) पोषयिता परमात्मा (इन्दुः न वृषा) चन्द्र इवानन्दवर्षकः (सः सुष्टुतीनां वेद) स खल्वस्माकं शोभनस्तुतीर्वेद जानाति तदनुरूपमनुग्रहं करोति “द्वितीयास्थाने षष्ठी व्यत्ययेन” (प्सुरः अभि प्रुषायति) साक्षाद्भूतः सन् स्वानन्दरसेनास्मानुपासकान् सिञ्चति (नः व्रजम् आप्रुषायति) अस्माकमिन्द्रियव्रजं स्वानन्दरसेन प्रवाहयति ॥३॥